Friday, December 28, 2007

बेनजीर के बिना पाक का भविष्य

बेनजीर के बिना पाक का भविष्य

दृष्टिकोण.bhutto बेनजीर भुट्टो की हत्या से मुझे गहरा धक्का लगा, लेकिन आश्चर्य बिल्कुल नहीं हुआ। पिछले छह माह में जब भी उनके साथ फोन पर बात हुई या ई-मेलिंग हुआ, उसमें मैंने कई बार कहा कि उनकी जान को खतरा है। वे चुनाव-प्रचार के दौरान अपनी सुरक्षा का विशेष इंतजाम करें, खास तौर से तब जबकि वे सरहदी सूबे में जाएं।

अफगानिस्तान से लगे इस सूबे में तालिबान का वर्चस्व है और इस्लामी कट्टरवादी बेनजीर के खून के प्यासे थे। मई में दुबई में उन्होंने मुझसे कहा कि उन्हें अपनी जान की परवाह नहीं है। वे अगर पाकिस्तान नहीं जाएंगी तो वहां जम्हूरियत आ नहीं सकती। वे आयतुल्लाह खुमैनी की तरह अपने देश से बाहर रहकर जन-आंदोलन खड़ा नहीं कर सकतीं। जो कल हुआ वह 18 अक्टूबर को भी हो सकता था।

पाकिस्तान में लौटते ही उन पर हमला हुआ। वे बाल-बाल बच र्गई लेकिन दो सौ लोग मारे गए। बेनजीर भुट्टो की हत्या तालिबान के सरहदी सूबे या मुहाजिरों के शहर कराची में नहीं, रावलपिंडी में हुई है। रावलपिंडी में पाकिस्तान की फौज का मुख्यालय है। पाकिस्तान की शक्ति-पीठ में पाकिस्तान सर्वथा अशक्त सिद्ध हुआ है। मुशर्रफ के लिए इससे बढ़कर हतक क्या होगी कि बेनजीर भुट्टो की हत्या उनकी नाक के नीचे हो गई।

बेनजीर लगभग उनकी सहयात्री बन चुकी थी। पाकिस्तान के अन्य दलों को शिकायत थी कि बेनजीर ने मुशर्रफ के साथ हाथ मिला लिया है। वे और मुशर्रफ मिलकर पकिस्तान को अमेरिका का मोहरा बना देंगे। बेनजीर ने अपनी चुनाव-सभाओं में यह कहना भी शुरू कर दिया था कि अगर वे चुनी र्गई तो वे आतंकवाद का सफाया कर देंगी। मुशर्रफ के लिए यह दोहरा धक्का है। आतंकवादियों ने यह सिद्ध कर दिया है कि पाकिस्तान में मुशर्रफ का नहीं, उनका राज है।

प्रकारांतर से यह अमेरिका को भी खुली चुनौती है। बेनजीर भुट्टो की हत्या के कारण अगर पाकिस्तान में गहरी अफरा-तफरी फैल गई तो मुशर्रफ को दुबारा आपातकाल ठोकने का बहाना मिल जाएगा, चुनाव स्थगित हो जाएंगे और आने वाले अनेक महीनों तक फौज का एकछत्र वर्चस्व कायम हो जाएगा। बेनजीर की अनुपस्थिति के कारण अमेरिकी रणनीति पंगु हो जाएगी।

यदि नवाज शरीफ के लिए मैदान खुला छोड़ दिया गया तो यह मुशर्रफ और अमेरिका दोनों के लिए खतरनाक होगा। जाहिर है कि मुशर्रफ-समर्थक मुस्लिम-लीग (कायदे-आजम) के अध्यक्ष चौधरी शुजात हुसैन बेनजीर का विकल्प नहीं बन सकते। अगर वे बन सकते होते तो बेनजीर को नेपथ्य से उठाकर मंच पर लाने की जरूरत ही क्यों पड़ती?

मुशर्रफ को मुस्लिम लीग का पंजाबी नेतृत्व नवाज शरीफ का मुकाबला नहीं कर सकता, क्योंकि मियां नवाज पंजाबी अस्मिता के प्रतीक बन गए हैं, इस्लामी कट्टरपंथी भी उनके खिलाफ नहीं हैं और उन पर यह इल्जाम भी नहीं है कि वे अमेरिकी हितों के चौकीदार हैं।

नवाज शरीफ इस समय पाकिस्तानी राष्ट्रवाद के प्रवक्ता बन गए हैं और अब तो उन्होंने बेनजीर की हत्या की सारी जिम्मेदारी मुशर्रफ पर डाल दी है। पाकिस्तान की जनता को भड़काने में वे कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे। जाहिर है कि बेनजीर को पर्दे से हटाने में मुशर्रफ का कोई हाथ नहीं हो सकता, लेकिन पीपीपी के कार्यकर्ता अपना गुस्सा मुशर्रफ पर निकालें तो काई आश्चर्य नहीं होगा।

बेनजीर की हत्या के कारण पाकिस्तान के चुनाव स्थगित भी हो सकते हैं, लेकिन अगर स्थगित नहीं हुए तो असली प्रश्न यह है कि अब चुनावों में दम क्या रह गया है? बेनजीर के बिना पाकिस्तान के चुनाव अब सिर्फ एक हाथ की ताली बनकर रह जाएंगे। मियां नवाज तो संसद के उम्मीदवार तक नहीं हैं। यह भी पता नहीं कि बेनजीर की पगड़ी किसके सिर बंधेगी?

यदि उनके पति आसिफ जरदारी मैदान में कूद पड़ेंगे तो यह असंभव नहीं कि पीपीपी को स्पष्ट बहुमत मिल जाए। जैसे इंदिरा गांधी के बलिदान ने राजीव गांधी को 410 सीटें दिलवा दी थीं, वैसे ही बेनजीर का बलिदान आसिफ जरदारी को प्रचंड बहुमत से प्रधानमंत्री बनवा सकता है। भुट्टो-परिवार का दुर्भाग्य है कि जुल्फिकार अली भुट्टो को तो फांसी के फंदे पर चढ़ना ही पड़ा, उनके दोनों बेटों और एक मात्र बेटी को भी संसार से असमय कूच करना पड़ा। भुट्टो परिवार में अब कोई ऐसा नहीं है जो राजनीति की कमान संभाल सके।

बेनजीर के दोनों बेटे और एक बेटी अभी छोटे हैं और उनकी भाभी घिनवा ने एक छोटी-मोटी पार्टी चला रखी है। उनकी एक भतीजी वयस्क है, लेकिन वह बेनजीर के खिलाफ मोर्चा बांधे रखती थीं। ऐसे में आसिफ जी को लोग मैदान में कूदने के लिए बाध्य जरूर करेंगे। हमारे दक्षिण एशियाई देशों के लिए यहां गहरा सबक उभरता है। जो राजनीतिक दल प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों की तरह चल रही हैं, उनमें आने वाले इस तरह के अप्रत्याशित संकट पूरी राष्ट्रीय राजनीति को ही खटाई में डाल देते हैं।

बेनजीर भुट्टो की नृशंस हत्या ने पाकिस्तान की राजनीति में तो भूकंप मचा ही दिया है, उसका गहरा असर पूरे दक्षिण एशिया पर भी पड़ेगा। बेनजीर की वापसी से अफगानिस्तान में काफी उम्मीदें जगी थीं। अफागानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई ने सितंबर में काबुल में मुझसे कहा था कि यदि बेनजीर पाकिस्तान लौट र्आई और जीत र्गई तो उनसे व्यवहार करना आसान होगा।

वे आतंकवादियों को पकड़ने और सरहदी इलाके को काबू करने में काफी मदद करेंगी। करजई का एक गणित यह भी रहा होगा कि अमेरिका की रहनुमाई में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत का लोकतांत्रिक नेतृत्व एक साथ मिलकर काम कर सकता है और उसके ठोस परिणाम जल्द ही सामने आएंगे। यह करने की जरूरत नहीं है कि पिछले 7-8 साल में बेनजीर भारत के काफी निकट आ र्गई थीं।

वे इतने वर्ष पाकिस्तान नहीं र्गई, लेकिन उस दौरान वे दो बार भारत र्आई। मेरे जैसे भारतीय मित्रों से वे अक्सर दुबई, लंदन या वाशिंगटन में मिला करती थीं। फोन और ई-मेल पर उनसे उसी भरोसे के साथ बातचीत हुआ करती थी, जैसे कि भारतीय नेताओं से होती है। यदि वे प्रधानमंत्री बन जातीं तो निश्चय ही भारत के साथ पाकिस्तान के संबंध सुधरते और पूरे दक्षिण एशिया का मानचित्र बदल जाता।

बेनजीर के असमय निधन से भारत के एक भावी मित्र प्रधानमंत्री का अवसान हुआ है। मैं तो गहरी निजी क्षति का अनुभव कर रहा हूं। वे सभी दुर्लभ क्षण याद आ रहे हैं, जब हम लोग सपरिवार साथ-साथ भोजन किया करते थे, साथ-साथ घूमा करते थे और घंटों बतियाते रहते थे। भाई आसिफ जरदारी और बच्चों के लिए मेरा दिल उमड़ा पड़ रहा है।

-लेखक पाकिस्तान-अफगानिस्तान मामलों के विशेषज्ञ हैं और बेनजीर भुट्टो के करीबी मित्र रहे हैं।


बेनज़ीर पर विशेष
गुरुवार, 27 दिसंबर, 2007 को 19:20 GMT तक के समाचार
पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की नेता बेनज़ीर भुट्टो की एक रैली में हत्या कर दी गई है. रावलपिंडी में उनकी एक रैली पर आत्मघाती हमला हुआ जिसमें 20 अन्य लोग भी मारे गए हैं. बेनज़ीर का शव उनके पैतृक गाँव लरकाना ले जाया जा रहा है.
भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि दक्षिण एशिया ने एक बेहतरीन नेता खो दिया है जिसने अपने देश में लोकतंत्र के लिए संघर्ष किया.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो की हत्या की कड़ी भर्त्सना की है. अमरीका ने इसे 'कायरतापूर्ण' कार्रवाई बताया है.
पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो की हत्या के बाद उनके समर्थकों ने सिंध प्रांत में जम कर हंगामा किया. जिसमें 11 लोगों की मौत हो गई.

3 comments:

Anonymous said...

I would like to express my sincere condolences to Bhutto's family, friends and citizens of Pakistan. I and world always remember to her for her extraordinary contribution and her role in the democratization and neighbourhood friendly process in Pakistan as well South Asia and world too. She was the Hero and always rememberable to us as democratic hero of the world. Huge salutation to her!

sharad neupane said...

I would like to express heartfelt condolense to the Pakistani people and family of Bhutto. This attack is not only to Bhutto but all who loves Democracy. We all citizen and nation of the would have to unite to fight against terrorism. Let this sorrow become strength to fight against terrorism

Unknown said...

I would like to express my heartfelt condolences to the Bhutto family and the people of Pakistan at this time of great sorrow.

Pakistani people have lost a great charismatic and patriotic leader who cared for her people so much so that she was willing to give up her life for the people. I wish we had a leader of the same caliber as Benazir. Unfortunately, we in Nepal do not have a leader who loves the country and the people. Nepali leaders only love their family first, their favorite cadres second, and their party last. The people and the country do not even enter into the equation. What a shame!

Nepali people and Pakistani people feel special affinity and understanding in the sense that we both have a neighbor which wants to be a superpower but does not stop in interfering in the internal affairs of its neighbors and cause instability.

K. Thapa
USA

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United States Institute of Peace

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